कर दो क्षमा किशोरी अपराध मेरे सारे
बड़ी आस लेके अई दरबार में तुम्हारे
जब भोर हुई तो मैंने कान्हा का नाम लिया
सुबह की पहली किरण ने फिर मुझे उसका पैगाम दिया
सारा दिन बस कन्हैया को याद किया
जब रात हुई तो फिर मैंने उसे ओढ़ लिया.
तुम्ही किरपा से श्यामा चलती है सारी श्रृष्टि
सदियों से रो रही हु ढालो दया की दर्स्ती
उधार और पतन है सब हाथ में तुम्हारे
बड़ी आस लेके अई दरबार में तुम्हारे
सपने में भी था कुना श्री राधा नाम जपसे,
मैं भी सावरू जीवन गह वन में गोर ताप से
मेरी भी झोपडी हो बरसने में तुम्हारे
बड़ी आस लेके अई दरबार में तुम्हारे
रसिको के झुण्ड तो में मुझे छुपालो प्यारी
चेतन की चाह नही जड़ ही बना लो राधे
जीबा पर रख लिए है संसार के सहारे
बड़ी आस लेके अई दरबार में तुम्हारे
कर दो क्षमा किशोरी अपराध मेरे सारे
बड़ी आस लेके अई दरबार में तुम्हारे