ना ये मांगता हूँ ना वो मांगता हूँ
गोबिंद मैं तेरी ख़ुशी माँगता हूँ
ना ये मांगता हूँ ना वो मांगता हूँ
ना ये मांगता हूँ ना वो मांगता हूँ
गोबिंद मैं तेरी ख़ुशी माँगता हूँ
ना ये मांगता हूँ ….
इतनी बार मधुरजी तो से
बेसाद तुम्हे पुकारा
इतनी बार भरी आँखों से
तेरा रूप निहारा
कितनी बार स्वपन सिंधु में
तेरा रूप निहारा
शरद पूनम का चंदा निकला
दूर हुआ जग का अँधियारा
मेरी दुनिया रही अँधेरी
हो ना सका उजियारा
हो ना सका खुद में उजियारा
जहाँ तुम रखोगे वाही मैं रहूँगा
जहाँ नाथ रख लोगे वही मैं रहूँगा ।
आपने लिए आशिया मांगता हूँ ॥
ना ये मांगता हूँ…
जो तुम कहोगे करूँगा मैं दिलबर
तेरी ख़ुशी में ख़ुशी चाहता हूँ ।
ना ये मांगता हूँ…
ये दुनिया ना रीझे ना रीझेगी कभी भी
तुमसे ही आपन नाता चाहता हूँ ।
ना ये मांगता हूँ…
मेरे हाथ टूटे हो मांगू मैं किसी से
शहंशाह के दर से सदा मांगता हूँ ।
ना ये मांगता हूँ…
ना ये मांगता हूँ ना वो मांगता हूँ
गोबिंद मैं तेरी ख़ुशी माँगता हूँ
ना ये मांगता हूँ ना वो मांगता हूँ