Naa Ji Bharke Dekha Naa Kuchh Baat Ki Krishna Bhajan

ना जी भरके देखा, न कुछ बात की,
बड़ी आरजू थी मुलाक़ात की – 2

करो दृष्टि अब तो, प्रभु करुणा की॥

गये जबसे मथुरा वे मोहन मुरारी,

सभी गोपियाँ बृज में व्याकुल थी भारी।

कहाँ दिन बिताया, कहाँ रात की॥1॥

चले आओ अब तो ओ प्यारे कन्हैया,

ये सूनी है कुंजन और व्याकुल है गैया।

सुना दो इन्हें अब तो धुन मुरली की॥2॥

हम बैठे हैं गम उनका दिल में ही पाले,

भला ऐसे में खुद को कैसे संभाले।

न उनकी सुनी न कुछ अपनी कही॥3॥

तेरा मुस्कराना भला कैसे भूले,

वो कदम की छैया वे सावन के झूले।

न कोयल की कू कू न पपीहा की पी॥4॥

तमन्ना यही थी कि आयेंगे मोहन,

मैं चरणों में वारूँगी तन मन ये जीवन।

हाय कैसा मेरा ये बिगड़ा नसीब॥5॥

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