भाग्य हमारे लिखे विधाता कर्म का साथी कोई नहीं

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भाग्य हमारे लिखे विधाता
मेटने वाला कोई नहीं
मात पिता ने जनम दिया है
कर्म का साथी कोई नहीं

पड़ी थी विपदा राम चंद्र पे
वो वनवास को चलेगये
राम चले और लक्ष्मण चाले
संग चली सीता रानी
राम चंद्र जी चलेगये वन को
वह रुकैया कोई नहीं

भाग्य हमारे लिखे विधाता
मेटने वाला कोई नहीं
मात पिता ने जनम दिया है
कर्म का साथी कोई नहीं

पड़ी थी विपदा हरिश्चंद्र बिकन चली तीनो प्राणी
राजा बिकगाये रोहित बिक गए संग बिकी तारा रानी
रोहित को जब डसा नाग ने वह रुकैया कोई नहीं

भाग्य हमारे लिखे विधाता
मेटने वाला कोई नहीं
मात पिता ने जनम दिया है
कर्म का साथी कोई नहीं

पड़ी थी विपदा पांच पड्यो
पे वो तो जुए मैं हार गए
राज्य भी हारे भाई भी हारे
और हारे द्रोपदी रानी
भरी सभा में चीयर खींचा था
वह रुकैया कोई नहीं

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